
जब बाड़ ही खेत खा जाए तो खेत का मालिक क्या करेगा भला ? इस कहावत को छत्तीसगढ़ शासन ने चरितार्थ कर दिखाया है। पर्यावरण प्रदुषण बढ़ाने और उसे रोकने में शासकीय विभागों की नकारात्मक भूमिका के कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा छतीसगढ़ शासन के पी डब्लू डी तथा स्वास्थ्य विभाग तथा विद्युत विभाग पर करोड़ों का जुर्माना लगाया गया है। मालूम हो कि रायगढ़ जिले के कुछ समाजसेवियों द्वारा घरघोड़ा और तमनार में विभिन्न उद्योगों तथा कोयला खदानों के कारण दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ते प्रदूषण समेत अन्य विषयों को लेकर एन जी टी में शिकायत की गयी थी। शिकायत को सही पाकर और आम लोगों के स्वास्थ्य को हो रहे गंभीर नुक्सान के मद्देनजर एनजीटी ने सीपीसीबी को एक कमेटी बनाकर शिकायत की जांच करने का आदेश दिया था। पर कमिटी ने बिना किसी निरीक्षण के ही रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी ,जिसपर शिकायतकर्ताओं ने अपनी आपत्ति दर्ज की। आपत्ति को उचित मानते हुए एनजीटी ने सेवानिवृत न्यायाधीश वी के श्रीवास्तव की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर 6 महीने में दो बार निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया। कमेटी द्वारा जांच और निरीक्षण में शिकायत सही पाए जाने पर तमाम संबंधितों को स्थिति में सुधार करने का निर्देश दिया गया। द्वितीय निरीक्षण में कमेटी ने पाया कि उसके द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देशों पर अमल नहीं किया गया है । लिहाजा कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में संबंधितों पर जुर्माने की अनुशंसा की है।
उद्योगों द्वारा प्रदूषण फैलाना तो आम बात है ,पर इस मामले में प्रदेश शासन के तीन विभागों को भी गंभीर रूप से दोषी पाया जाना हैरतअंगेज ही नहीं खतरनाक भी है। जिस शासन और उसके विभागों का मुख्य काम ही आम जनता की मुकम्मल देखभाल , सुरक्षा और जनकल्याण हो ,उनका इन्हीं मामलों में गंभीर रूप से दोषी पाया जाना कई सवाल खड़े करता है। मालूम हो कि कमेटी की रिपोर्ट में निर्देशों की अवहेलना और लापरवाही बरतने के आधार पर पीडब्ल्यूडी छत्तीसगढ़ शासन और स्वास्थ्य विभाग छत्तीसगढ़ शासन ,सी जी एस पी जी कंपनी के अतिरिक्त टी आर एन एनर्जी ,जे एस पी एल ,हिंडालको ,महावीर एनर्जी और अम्बुजा सीमेंट पर कुल 10 करोड़ का जुर्माना लगाया गया है।