शिवसेना को लेकर चुनाव आयोग ने जरूर एकनाथ शिंदे के पक्ष में फैसला सुनाया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अभी भी अहम सुनवाई जारी है. दोनों उद्धव और शिंदे गुट की तरफ से तमाम दलीलें रखी जा रही हैं. इसी कड़ी में गुरुवार को उद्धव गुट की तरफ से कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें रखीं. उन्होंने लोकतंत्र को बचाने का हवाला दिया, सुप्रीम कोर्ट से इसकी रक्षा करने की मांग की. दोनों तरफ की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
विश्वास मत का सामना क्यों नहीं किया, कोर्ट का सवाल
दलीलों के दौरान एक वक्त ऐसा आया जब अदालत ने तल्ख अंदाज में कहा कि वे उद्धव ठाकरे की सरकार को फिर कैसे बहाल कर सकते हैं. सीजेआई ने कहा कि यह कहना आसान है. लेकिन क्या होता अगर उद्धव ठाकरे सीएम बन जाते हैं. लेकिन उस समय उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया? यह ऐसा ही है जैसे अदालत से कहा जा रहा है कि जो सरकार इस्तीफा दे चुकी है, उसे बहाल करें. मुख्यमंत्री ने विश्वास मत का सामना किये बगैर इस्तीफा दे दिया, हम उन्हें उस पद पर दोबारा कैसे बहाल कर सकते हैं? इसी कड़ी में जस्टिस एम आर शाह ने बोला कि अदालत उस सरकार को कैसे बहाल कर सकती है जिसने विश्वास मत का सामना नहीं किया? बात को आगे बढ़ाते हुए सीजेआई ने कहा कि यदि आप विश्वास मत खो चुके हैं तो यह एक तार्किक बात होगी, ऐसा नहीं है कि आपको सरकार ने बेदखल कर दिया है, आपने विश्वास मत का सामना ही नहीं किया?
क्या है ये पूरा सियासी ड्रामा?
जानकारी के लिए बता दें कि महाराष्ट्र में पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर दी थी. असल जब 2019 में उद्धव ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई, उस समय से ही शिवसेना का एक तबका इस बात से नाराज था. विचारधारा को लेकर तो विवाद था ही, जमीन पर कुछ दूसरे मुद्दों को लेकर भी अंसतोष बढ़ रहा था. उस असंतोष को देखते हुए एकनाथ शिंदे बड़ी बगावत की थी. उन्हें इस बात का अहसास था कि शिवसेना में कई नेता उनके उस फैसले का समर्थन करेंगे. ऐसा हुआ भी क्योंकि पार्टी के ज्यादातर विधायक बाद में उन्हीं के साथ चले गए. कई दिनों तक ये सियासी ड्रामा ऐसे ही चलता रहा, शिंदे को अपने विधायकों को गुवाहाटी के होटल तक में रखना पड़ा.
बाद में बीजेपी से बात की गई और फिर महाराष्ट्र में नई सरकार बन गई जहां पर एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया गया. अब सरकार तो बना ली गई, शिंदे ने शिवसेना पर भी अपना दावा ठोक दिया. उन्होंने जोर देकर कहा कि क्योंकि ज्यादा पार्टी नेता उनके साथ खड़े हैं, ऐसे में असल शिवसेना कहलाने का हक भी उनके पास है. ये मामला चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट तक गया. अब चुनाव आयोग ने तो चुनाव चिन्ह को लेकर शिंदे के पक्ष में फैसला सुना दिया है, वहीं अभी इसी मामले के कुछ दूसरे पहलुओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है. असल में सुप्रीम कोर्ट में 5 याचिकाएं दाखिल की गई हैं.