#readerfirst Dr Sharma’s work literature and society is dedicated to India’s cultural practice
भिलाई । आज समय की माँग है कि – धर्म , संस्कृति , अध्यात्म और साहित्य के साथ वैज्ञानिक चिन्तन को भी जोड़ा जाये।साहित्य मनीषी आचार्य डा.महेशचन्द्र शर्मा अपने सतत् लेखन से इसी दिशा में बढ़ रहे हैं।उनका जीवन भारत की सांस्कृतिक साधना को समर्पित है। उनकी कृति ‘ साहित्य और समाज ‘ भी इसका उदाहरण है। साहित्य- संस्कृति प्रेमी और वरिष्ठ समाजसेवी सुनील अग्रवाल ने विश्व पुस्तक दिवस पर ‘ साहित्य और समाज ‘ पर समीक्षा संगोष्ठी के मुख्यअतिथि की आसन्दी से अपने विचार व्यक्त किये। इसका आयोजन इन्दिरा गांधी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , रामनगर , सुपेला में साहित्य सृजन परिषद् भिलाई एवं देववाणी संस्कृत विद्यालय रामनगर द्वारा संयुक्तरूप से किया गया था। पुस्तक के लेखक इस्पातनगरी के जानेमाने संस्कृति-शिक्षाविद् आचार्य डा.महेशचन्द्र शर्मा हैं।ये उनकी नौवीं कृति है। पुस्तक पर आलेख पाठ करते हुये साहित्य की पूर्व प्रोफ़ेसर एवं लेखिका श्रीमती डा.नलिनी श्रीवास्तव ने पुस्तक को दुर्लभ नीलकमलों का पुष्पगुच्छ कहा। इस अनुपम कृति को सबके लिये पठनीय बताया। लगभग 300 पृष्ठों में मुद्रित 126 लघु ललित निबन्ध अनमोल मोतियों जैसे प्रकाशमय हैं।डा.शर्मा ने भारती संस्कृतिविद् मुस्लिम मनीषियों का भी ससम्मान उल्लेख किया है। बेरला के साहित्यकार और वरिष्ठ व्याख्याता डा.राजेन्द्र पाटकर ‘स्नेहिल’ का आलेख वाचन करते हुये वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती आशा झा ने कहा कि डा.शर्मा एक सिद्धहस्त लेखक हैं। इस किताब में दिये गए सूत्र जीवन के समीकरणों को हल करना सिखाते हैं। डा.शर्मा की बहुमुखी प्रतिभा लेखों से प्रमाणित है।नपे तुले शब्दों में लिखे निबन्धों में अविरल भावप्रवाह है। पुस्तक भारतीय संस्कृति की अनमोल थाती है। मध्यप्रदेश के दतिया नगर महाविद्यालय के पूर्व प्रो. डा. रामेश्वर प्रसाद गुप्त की पन्द्रह दोहों की पद्यबद्ध समीक्षा का कवि त्रिलोकी नाथ कुशवाहा ‘अजन’ ने वाचन किया जिसमें पुस्तक की मुक्तकंठ से प्रशसा की गयी।लेखक डा.शर्मा ने इस कृति को भारत-भारती के चरणों में नौवाँ पुष्प बताया। माता-पिता , गुरुजनों और परिवार के आशीर्वाद से , साहित्यिक मित्रों के सहयोग और सहृदय पाठकों के प्रेम के बलपर आगे भी लिखते रहेंगे । कार्यक्रम अध्यक्ष एन.एल. मौर्य ‘प्रीतम’ने कहा कि छत्तीसगढ़ के मूर्धन्य एवं चर्चित विद्वान् आचार्य डा.महेशचन्द्र शर्मा की समाज के लिये अमूल्य भेंट है ये पुस्तक। कार्यक्रम का शुभारंभ देवी सरस्वती की पूजा अर्चना से हुआ। अतिथियों एवं कृतिकार का शाल-श्रीफल-पुष्पमालाओं से हार्दिक सम्मान भी आयोजकों द्वारा किया गया।कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए शुचि “भवि” ने कहा कि समयाभाव और भागम भाग से गुजरती युवापीढ़ी के लिये सूत्रशैली में लिखी ये पुस्तक समसामयिक एवं उपयोगी सिद्ध होगी। आभार ज्ञापन डा.नौशाद सिद्दीक़ी ‘सब्र’ ने किया। मौके पर ‘आसपास के ‘सम्पादक प्रदीप भटटाचार्य , सिरजन साहित्य संस्था के प्रदेशाध्यक्ष डा.दीनदयाल साहू , प्रसिद्ध शायर मुमताज़ , कवि त्र्यम्बक राव साटकर , ओम् वीर करन , नावेद रज़ा दुर्गवी , श्रीमती सन्ध्या श्रीवास्तव , बैकुण्ठ महानन्द , हाज़ी रियाज़ खान , रवि शास्त्री , मुकुल कुमार झा , पी.के.श्रीवास्तव , सन्तोष लहरे , विनय कुमार , वीर सिंह , ओम्प्रकाश जायसवाल और ए.के. मास्टर जी समेत बड़ी संख्या में साहित्यकार, शायर एवं साहित्यप्रेमी सानन्द समापन तक उपस्थिति रहे।