जब बाड़ ही खेत खा जाए तो किसान भला क्या करे ! यह पुरानी मसल छत्तीसगढ़ शासन में सौ प्रतिशत चरितार्थ होती है । छत्तीसगढ़ शासन के विभिन्न विभाग अपनी जिम्मेदारी कैसे निभाते हैं और शासन को कैसे चुना लगाने हैं उसकी एक बानगी श्रम विभाग , उद्योग विभाग और औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग में देखने को मिली। इन तीनों विभागों ने मिलीभगत कर सेस और सब्सिडी के माध्यम से सरकार को लाखों की चपत लगाई है।
शासन द्वारा उद्योगपतियों को प्रोत्साहन देने के लिए कुल लागत में अच्छी खासी छूट दी जाती है जिसे सब्सिडी कहते हैं। इस छूट का बेजा लाभ उठाने के लिए प्रोजेक्ट में आंकड़ों का जो खेल खेला जाता है उसमें उद्योग विभाग, श्रम विभाग , औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग के साथ उद्योगपति शामिल होता है । कुछ चांडाल चौकड़ी मिलकर सरकार को राजस्व का भारी नुकसान पहुंचाते हैं ।
उद्योगपति श्रम विभाग से लाइसेंस प्राप्त करने से पहले अपने प्रोजेक्ट की लागत कम बताता है क्योंकि इस लागत पर उसे सेस या उपकर चुकाना होता है । हालांकि यह सेस की राशि दर्शाए गए लागत का मात्र एक प्रतिशत ही होती है । लेकिन जब डी आई सी या उद्योग विभाग में रजिस्ट्रेशन कराने की बारी आती है तो इसी उद्योग की लागत कई गुना बढ़ जाती है क्योंकि इस लागत पर शासन के द्वारा छूट या सब्सिडी प्रदान की जाती है । उल्लेखनीय है कि यह सब्सिडी कुल प्रोजेक्ट कॉस्ट का 35 से 38.5 प्रतिशत तक होती है । जाहिर है यह रकम लाखों में होती है और इसी रकम की बंदरबांट चांडाल चौकड़ी करती है ।
पिछले दिनों हनुमान फूड्स का मामला हम उजागर कर चुके हैं । ऐसा ही दूसरा मामला महालक्ष्मी राइस मिल, ग्राम अमुर्रा, तहसील बरमकेला का है । महालक्ष्मी राइस मिल के संचालक द्वय माता अग्रवाल और आकाश अग्रवाल ने सेस की राशि चुकाने के लिए अपने राइस मिल प्रोजेक्ट की लागत राशि दस्तावेजों में 53.20 लाख रुपए दर्शायी और इस पर 1 प्रतिशत के हिसाब से 53.20 हजार रुपए सरकार के खजाने में जमा कराए । वहीं सब्सिडी प्राप्त करने की बारी आने पर इसी राइस मिल की प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ कर 1,30,68,550 रुपए हो गई , जैसा कि दस्तावेजों में दर्शाया गया है। इस प्रकार दो विभागों में पेश किए गए दस्तावेजों में लगभग ढाई गुना का अंतर है।
ऐसा ही गणित हनुमान फूड्स , ग्राम मनीपुर, सारंगढ़ ने भी लगाया था । हनुमान फूड्स ने सेस चार्ज के लिए प्रस्तुत किए गए प्रोजेक्ट दस्तावेजों में लागत 37.50 लाख रुपए दर्शायी और 37,500 रुपए सेस चार्ज के रूप में सरकारी खजाने में जमा किए । वहीं डी आई सी में पेश किए दस्तावेजों में, जिनपर सब्सिडी मिलनी है , प्रोजेक्ट की राशि 1,34,48,478 रुपए दर्शायी गई है ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सेस और सब्सिडी का यह गुणा भाग बरसों से कुछ चांडाल चौकड़ी खेलती आ रही है । उद्योगपति तो पैसे के लालच में यह खेल खेल ही रहे हैं लेकिन जिन्हें फाउल रोकने की जिम्मेदारी सरकार ने दी है वे रेफरी भी खिलाड़ी से मिल गए हैं । तीनों विभागों ने बरसों से आज तक कभी किसी उद्योग के दस्तावेजों को क्रॉस चेक नही किया , गलत सही की तस्दीक नहीं की ? बेहद हैरत की बात है कि जितना सेस चार्ज उद्योगपति ने दिया उसे आंखे बंद कर ले लिया । यह भी देखने की जहमत नहीं उठाई की आज इतनी मामूली रकम से कोई उद्योग कैसे खोला जा सकता है ? वहीं , सब्सिडी देते समय भी कभी सेस चार्ज जमा किए दस्तावेजों को वेरिफाई करने की हिमाकत उद्योग विभाग द्वारा नही की गई कि उसमें प्रोजेक्ट की लागत क्या दर्शायी गई है ? भयानक घपलेबाजी है । मामला उजागर होने के बाद अब जिम्मेदार फरमाते हैं कि यह तो आपने बताया तब हमें पता चला है । कितने मासूम हैं बेचारे !
यहीं पर यह मसल चरितार्थ होती है कि जब बाड़ ( उपरोक्त तीनों विभाग) ही खेत (शासकीय राजस्व की राशि) खा जाए तो बेचारा किसान ( शासन) क्या करे ?
आप चाहें तो कर सकते हैं शिकायत
इस संबंध में जब हमने औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग के उप संचालक मनीष श्रीवास्तव से मिल कर हकीकत जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि आपके माध्यम से ही हमें यह जानकारी प्राप्त हुई है। इस संबंध में हम जांच करने के बाद ही कुछ बता पाएंगे । आप चाहें तो इस संबंध में लिखित में शिकायत कर सकते हैं ।
उद्योग विभाग बन रहा है अनजान
वहीं जब हमने डी आई सी के महाप्रबंधक से मिल कर वास्तविकता जानने की कोशिश की तो उन्होंने हमें इसकी जानकारी नहीं है , कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया ।
Game of Mahalaxmi Ricemill and Cess subsidy, departments are becoming ignorant…?