जिले से एक बेहद चौंकानेवाली खबर सामने आई है । मामला राइस मिल का है । मिली जानकारी के अनुसार श्री हनुमान फूड्स , राइस मिल द्वारा श्रम विभाग के पोर्टल में सेस की राशि बचाने के लिए प्रोजेक्ट कॉस्ट 37.50 लाख दर्शाया गया है और इसपर 1त्न की दर से 37,500 रुपए की राशि विभाग में जमा की गई है । वहीं सब्सिडी के लिए जमा किए गए दस्तावेज में प्रोजेक्ट कॉस्ट 1,34,48,478 रुपए दर्शाया गया है । इसका सीधा सा अर्थ तो यही निकलता है कि जहां शासन के खजाने में पैसा जमा करने की बात है तो वहां प्रोजेक्ट कॉस्ट काम बताया गया है और जहां शासन से सब्सिडी लेने की बात है वहां प्रोजेक्ट कॉस्ट लगभग साढ़े तीन गुना बढ़ गया ।
यह मामला और भी कई राज खोल सकता है जब किसी सक्षम अधिकारी द्वारा पूरे प्रोजेक्ट की सूक्ष्मता से जांच की जाए । बताया जा रहा है कि प्रोडक्शन सर्टिफिकेट पाने तक हुए खर्च का जो बिल सबमिट किया जाता है और प्रोजेक्ट कॉस्ट को बताया गया है ,उसके बिलों की गहन जांच से कई नए राज सामने आ सकते हैं ।
मामला केवल शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाने का ही नहीं है , बल्कि सरकारी विभागों की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है । दरअसल, यह हमारे सिस्टम की त्रासदी है कि यहां रक्षक ही भक्षक बन बैठे हैं । निश्चित रूप से यह विभागीय कर्मचारियों अधिकारियों की मिलीभगत का नतीजा है । और यह भी तय है कि मामला केवल एक ही राइस मिल का नहीं होगा । गहन जांच में हो सकता है कि प्याज के छिलके की भांति परत दर परत एक से बढक़र एक रहस्योद्घाटन हों। यदि दो विभागों में एक ही राइसमिल के लिए सब्सिडी लेने के लिए अलग दस्तावेज और सेस जमा करने के लिए अलग दस्तावेज जमा किये गये हों तो यह गंभीर मामला है। और यह संभव ही नहीं है कि आकंड़ो की बाजीगरी से विभाग अनजान होगें।र्यवाही
आप चाहें तो कर सकते हैं शिकायत
इस संबंध में जब हमने औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग के उप संचालक मनीष श्रीवास्तव से मिल कर हकीकत जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि आपके माध्यम से ही हमें यह जानकारी प्राप्त हुई है। इस संबंध में हम जांच करने के बाद ही कुछ बता पाएंगे । आप चाहें तो इस संबंध में लिखित में शिकायत कर सकते हैं ।
उद्योग विभाग बन रहा है अनजान
वहीं जब हमने डी आई सी के महाप्रबंधक से मिल कर वास्तविकता जानने की कोशिश की तो उन्होंने हमें इसकी जानकारी नहीं है , कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया ।