मिलीभगत मुख्यतया डी आई सी, औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग और उद्योगपतियों के बीच की है , जिसके अंतर्गत नए राइस मिल की स्थापना में लगनेवाले सेस या उपकर और उद्योग लगने के बाद शासन से उसपर मिलनेवाली सब्सिडी की बंदरबांट कर सरकारी खजाने को चुना लगाया जाता रहा है ।
हमने पहले आपको दो राइस मिलों श्री हनुमान फूड्स , राइस मिल , ग्राम मनीपुर , सारंगढ़ और महालक्ष्मी राइस मिल , ग्राम अमूर्रा , तहसील बरमकेला के बारे में जानकारी दी थी । इसको एक बार फिर से बता दें कि श्री हनुमान फूड्स ने श्रम विभाग में अपना प्रोजेक्ट कॉस्ट 37.50 लाख रुपए दर्शाया था और इस राशि पर सेस या उपकर के रूप में 37,500 रुपए सरकारी खजाने में जमा किए थे । वहीं डी आई सी में पेश किए गए दस्तावेजों में प्रोजेक्ट कॉस्ट 1,34,48,478 रुपए दिखाया गया है । दूसरे केस में महालक्ष्मी राइस मिल के मालिक माया अग्रवाल और आकाश अग्रवाल द्वारा प्रोजेक्ट कॉस्ट 53.20 लाख बताया गया और 53.20 हजार रुपए सेस या उपकर के रूप में जमा किए गए । वहीं जहां से सब्सिडी प्राप्त करनी है वहां प्रोजेक्ट कॉस्ट दस्तावेजों में 1,30,68,550 रुपए बताए गए हैं ।
अब जब हमारे द्वारा मामला उजागर हुआ तो महालक्ष्मी राइस मिल द्वारा फिर से आंकड़ों का खेल खेला जाने लगा । प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार मामला उजागर हो जाने की दहशत में महालक्ष्मी राइस मिल वालों ने प्रोजेक्ट के भविष्य की अनुमानित लागत बढ़ाकर 7700000 कर दी और इस राशि के ऊपर सेस की रकम 77,000 रुपए जमा किए गए। मजे की बात इस चालान में यह है कि वर्क स्टार्टिंग डेट 12/4/2023 दर्ज है और अनुमानित वर्किंग कंप्लीशन डेट 1/1/2023 दर्ज है । यह चालान 27/2/2023 को जमा किया गया है।
सेस की राशि का बढ़ाकर जमा किया जाना क्या दर्शाता है ? अब विभाग के अधिकारी इसपर क्या जबाव देंगे? डेट के बारे तो चलिए रटा रटाया जबाव पेश कर दिया जायेगा कि यह मानवीय भूल है पर पूरे प्रोजेक्ट कॉस्ट में परिवर्तन ? क्या यह भी मानवीय भूल की श्रेणी में आएगी जो सी ए द्वारा सर्टिफाइड है ? और जिसे विभागीय अधिकारियों ने पास किया था ? अब जब महालक्ष्मी राइस मिल के संचालकों द्वारा आंकड़ों में किया जानेवाला खेल उजागर हो गया है तो क्या विभाग द्वारा उनपर फर्जीवाड़े के आरोप में मुकदमा दर्ज किया जाएगा ? क्या अन्य राइस मिलों की गहन जांच सक्षम और उत्तरदायी महकमे द्वारा कराई जाएगी । मामला सरकारी खजाने को चुना लगाने का है जो अंतत: आम लोगों का पैसा है तो क्या शासन प्रशासन इसपर उचित संज्ञान लेगा और अपेक्षित कदम उठाएगा ?

दोनों विभागों में जमा दस्तावेजों की कब होगी जांच?

दोनों विभागों में जमा दस्तावेजों की कब होगी जांच?
अब सवाल यह उठता है कि महालक्ष्मी राइस मिल द्वारा औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा विभाग और उद्योग विभाग में जमा किये गये दस्तावेजों की जांच किया जायेगा, यदि किया जायेगा तो किसके द्वारा? जमा दस्तावेजों में सीए सर्टिफिकेट भी जमा होगा, ऐसे में दो विभाग में एक ही संस्थान के लिए दो प्रकार के दस्तावेज जमा किये गये हों, ताकि सेस की राशि बचाते हुए सस्बिडी की अधिक राशि ले ली जाये। तो ऐसी स्थिति में जांच उपरांत विभाग संबंधित पर क्या विधि सम्मत कार्यवाही की जायेगी।
निष्पक्ष जांच हुई तो कई मामले होगें उजागर
यह मामला और भी कई राज खोल सकता है जब किसी सक्षम अधिकारी द्वारा पूरे प्रोजेक्ट की सूक्ष्मता से जांच की जाए । बताया जा रहा है कि प्रोडक्शन सर्टिफिकेट पाने तक हुए खर्च का जो बिल सबमिट किया जाता है और प्रोजेक्ट कॉस्ट को बताया गया है, उसके बिलों की गहन जांच से कई नए राज सामने आ सकते हैं । इतना ही नहीं संबंधित दोनों विभागों में जमा किये गये दस्तावेजों में सीए सर्टिफिकेट सहित अन्य दस्तोवेज जो संलग्र किये गये हैं की भी जांच होनी चाहिए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि इतना बड़ा खेल के पीछे और कौन- कौन शामिल हैं?