क्या है मामला ?
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कुछ याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लाकर उनका रजिस्ट्रेशन किए जाने की मांग की गई है. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था. इसके चलते दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अब अपराध नहीं माना जाता. ऐसे में साथ रहने की इच्छा रखने वाले समलैंगिक जोड़ों को कानूनन शादी की भी अनुमति मिलनी चाहिए.
- सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का मामला 5 जजों की संविधान पीठ को सौंप दिया है.
- इस पर 18 अप्रैल को मामले पर सुनवाई होगी.
- याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह के रजिस्ट्रेशन की मांग की गई है.
- केंद्र ने कहा है कि यह भारत की पारिवारिक व्यवस्था के खिलाफ होगा. इसमें कानूनी अड़चनें भी आएंगीय
इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी के मसले पर केंद्र को नोटिस जारी किया था. साथ ही अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था. अब कोर्ट के सामने 15 से अधिक याचिकाएं हैं. ज़्यादातर याचिकाएं गे, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर लोगों ने दाखिल की है.
क्या कहा कानून मंत्रालय ने?
मामले पर जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा है कि भारत में परिवार की पति-पत्नी और उन दोनों की संतानें हैं. समलैंगिक विवाह इस सामाजिक धारणा के खिलाफ है. संसद से पारित विवाह कानून और अलग-अलग धर्मों की परंपराएं इस तरह की शादी को स्वीकार नहीं करती. ऐसी शादी को मान्यता मिलने से दहेज, घरेलू हिंसा कानून, तलाक, गुजारा भत्ता, दहेज हत्या जैसे तमाम कानूनी प्रावधानों को अमल में ला पाना कठिन हो जाएगा. यह सभी कानून एक पुरुष को पति और महिला को पत्नी मान कर ही बनाए गए हैं.
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि अगर ऐसी शादी को मान्यता मिलती है तो भविष्य में समलैंगिक जोड़े बच्चों को गोद लेंगे. इस बात पर भी विचार करने की जरूरत है कि समलैंगिक जोड़े के साथ रह रहे बच्चे की मानसिक स्थिति पर इसका किस तरह का असर पड़ेगा. सुनवाई के अंत में 3 जजों की बेंच ने कहा कि वह मामले के कानूनी पहलुओं और सामाजिक महत्व के चलते इसे संविधान पीठ को सौंप रही है. आगे की सुनवाई में सभी पक्षों को अपनी बातें रखने का पूरा मौका दिया जाएगा.