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सुप्रीम कोर्ट ने MCD में एल्डरमैन की नियुक्ति पर सुनाया फैसला,केजरीवाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका, कहा- आपसे सलाह की जरूरत नहीं

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Supreme Court gave its verdict on the appointment of aldermen in MCD, Supreme Court gave a blow to Kejriwal government, said- we don’t need your advice

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में एल्डरमैन की नियुक्ति के मामले पर फैसला सुना दिया है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा एमसीडी में की गई एल्डरमैन की नियुक्ति को सही ठहराया है। शीर्ष अदालत के इस फैसले से दिल्ली की केजरीवाल सरकार को बड़ा झटका लगा है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन की नियुक्ति कर सकते हैं और इसके लिये वह किसी को नामित कर सकते हैं।शीर्ष अदालत ने कहा कि 10 एल्डरमैन को नामित कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें दिल्ली सरकार के मंत्रीपरिषद की सलाह की जरूरत नहीं है.अदालत ने कहा कि एलजी ऐसे 10 सदस्यों को नामित कर सकते हैं।

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने एमसीडी में उपराज्यपाल द्वारा नामित और नियुक्त किये गये एल्डरमैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। दिल्ली सरकार ने एलजी पर नियमों की अनदेखी करने और मनमाने तरीके से एल्डरमैन पर फैसला लेने का आरोप लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई कर एल्डरमैन की नियुक्ति को सही ठहराया है।

इससे पहले दिल्ली में एमसीडी के पार्षदों की नियुक्ति का फैसला बिना अरविंद केजरीवाल सरकार के मंत्रियों से विचार-विमर्श कर किए जाने का आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने विरोध किया था। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी। जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के इस फैसले पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जेबी पार्डीवाला ने पिछले साल 17 मई को सुनवाई के बाद आदेश को सुरक्षित रख लिया था।
याचिका में किया गया था यह दावा

दिल्ली सरकार की ओर से दायर याचिका में दावा किया गया है कि 1991 में संविधान के अनुच्छेद 239AA के लागू होने के बाद से यह पहली बार है कि उपराज्यपाल ने चुनी हुई सरकार को पूरी तरह दरकिनार करते हुए इस तरह से ‘एल्डरमैन’ को नामित किया है। इसमें यह भी कहा गया कि एलजी मंत्रिपरिषद की मदद और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं। यदि कोई मतभेद होता है, तो वह इस मुद्दे को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। याचिका में कहा गया कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ दो ही विकल्प हैं, पहला- चुनी हुई सरकार की ओर से सुझाए गए गए नामों को मंजूर किया जाए और दूसरा- अगर प्रस्ताव पर सहमति न बने तो इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में इस मामले में दिल्ली एलजी से जवाब मांगा था।

कौन होते हैं एल्डरमैन?

इसे समझने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना होगा। एल्डरमैन शब्द की शुरुआत पुराने अंग्रेजी शब्द एल्डोरमैन से हुई है, जिसका मतलब होता है बुजुर्ग आदमी। इसका मतलब किसी खास क्षेत्र में विशेषज्ञ व्यक्ति। दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 के अनुसार, दिल्ली के उपराज्यपाल निगम में 25 साल से ऊपर की उम्र के दस लोगों को मनोनीत कर सकते हैं। उम्मीद की जाती है कि इन लोगों को नगरपालिका प्रशासन में विशेषज्ञता या अनुभव होगा। हालांकि, एल्डरमैन मेयर के चुनाव में वोट नहीं डाल सकते। वार्ड समिति के सदस्यों के रूप में, उनके पास एमसीडी के 12 जोन में से प्रत्येक के लिए एक प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट डालने की शक्ति होती है। मतदान अधिकारों से जुड़े प्रतिबंधों को छोड़कर, एक एल्डरमैन की भूमिका एक पार्षद के समान होती है। पूर्व उत्तर दिल्ली नगर निगम के पूर्व कानूनी अधिकारी अनिल गुप्ता के अनुसार,एल्डरमैन क्षेत्र के विकास के उद्देश्यों के लिए एक पार्षद को मिलने वाले धन को भी प्राप्त कर सकते हैं।

एलजी कैसे नियुक्त करते हैं एल्डरमैन?

एलजी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जरूरी बातें कहीं। जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि दिल्ली नगर निगम अधिनियम की धारा 3(3)(बी) में कहा गया है कि उपराज्यपाल 25 वर्ष से कम नहीं और नगरपालिका प्रशासन में विशेष ज्ञान या अनुभव वाले 10 व्यक्तियों को नामित कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह सुझाव गलत है कि दिल्ली में उपराज्यपाल की शक्ति एक शब्दार्थिक लॉटरी थी। यह संसद द्वारा बनाया गया कानून है, यह उपराज्यपाल द्वारा प्रयोग किए गए विवेक को पूरा करता है क्योंकि कानून उसे ऐसा करने के लिए कहता है और अनुच्छेद 239 के अपवाद के अंतर्गत आता है। यह 1993 का डीएमसी अधिनियम था जिसने पहली बार उपराज्यपाल को नामित करने की शक्ति दी थी और यह अतीत की कोई विरासत नहीं है।

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