Today is Muharram, why is it called the month of mourning? Why is Muharram celebrated, what is its significance, what do Muslims do on this day?
इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम है, जिसे मुहर्रम-उल-हराम के नाम से भी जानते हैं. यह इस्लाम के चार पवित्र महीनों में से एक है. मुहर्रम पैगंबर मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की मृत्यु के शोक का महीना है. इस दिन शिया समुदाय के लोग मातम मनाते हैं, जबकि सुन्नी ताजिया पुर्सी करते हैं. इस्लामिक विषयों के जानकार रामिश सिद्दीकी से जानते हैं कि मुहर्रम का इतिहास और महत्व क्या है?

मुहर्रम क्या है?
इस्लामिक कैलेंडर में मुहर्रम साल का पहला महीना होता है. इस्लाम में साल के चार महीने मुहर्रम, रजब, ज़ुल-हिज्जा, ज़ुल-क़ादाह माह को बाकी महीनों पर श्रेष्ठता दी गई है. मुहर्रम का शाब्दिक अर्थ है मनाही. कुरान और हदीस के अनुसार, मुहर्रम के महीने में युद्ध या लड़ाई-झगड़ा करना निषिद्ध है. इस पवित्र महीने के समय मुसलमानों को अधिक से अधिक इबादत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इस महीने की शुद्धता के कारण अनेकों लोग विश्वभर में इस महीने में रोजा यानी उपवास रखते हैं. इस्लामिक इतिहास के अनुसार, मुहर्रम के महीने में कई बड़ी घटनाएं हुई हैं लेकिन उन सब में सबसे बड़ी और दुखद घटना थी हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन इब्न अली और उनके परिवार का कर्बला के मैदान में निर्ममता से हुआ संहार.
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
यौम-ए-आशूरा के 10वें दिन को मुहर्रम कहा जाता है। इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, इसी दिन हजरत (Muharram 2024) रसूल के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन के उनके बेटे, घरवाले और उनके परिवार वाले इराक के शहर कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे।
Muharram 2024: कहा जाता है कि 680 हिजरी के इसी माह में सच्चाई के लिए धर्म युद्ध हुआ था, जिसमें पैगम्बर हजरत मुहम्म्द साहब के नाती और इब्नज्याद के बीच हुई थी। इस जंग में जीत हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की हुई थी। लेकिन इब्नज्याद के कमांडर शिम्र ने हजरत हुसैन अलैहिस्सलाम (Muharram 2024) और उनके सभी 72 साथियों (परिवार वालो) को शहीद (Muharram 2024) कर दिया था। इस जंग में उनके 6 माह के बेटे हज़रत अली असगर भी शामिल थे। तभी से इस दिन खुशी की जगह शोक मनाया जाता है।
कैसे मनाया जाता है मुहर्रम?
मुहर्रम के दिन शिया समुदाय के लोग जुलूस निकालते हैं। यह दिन शोक, गम और त्याग (Muharram 2024) का प्रतीक होता है। इस दिन लोग काले रंग के कपड़ें पहनते हैं, छाती पीटते हैं और कर्बला की जंग में शहादत (Muharram 2024) होने वालों को याद करते हुए ताजिया जुलूस निकालते हैं। वहीं सुन्नी समुदाय के लोग यौम-ए-आशूरा के दिन व्रत रखते हैं।
17 जुलाई 2024 को आशूरा
7 जुलाई 2024 को मुहर्रम के पवित्र महीने की शुरुआत हुई थी। ऐसे में 17 जुलाई 2024 को आशूरा मनाया जाएगा। आज हम आपको बताएंगे कि आशूरा के दिन लोग मातम क्यों मनाते हैं। दरअसल इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, आज से करीब 1400 साल पहले बादशाह यजीद ने हजरत इमाम हुसैन को कर्बला के मैदान में कैद कर लिया था। हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे। उनकी शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को लोग मातम के तौर पर मनाते हैं, जिसे आशूरा भी कहा जाता है।
मुहर्रम और कर्बला की जंग में क्या है कनेक्शन?
2024 में 17 जुलाई के दिन मुहर्रम का त्योहार मनाया जाएगा। इस मौके पर हम आज हम आपको बताएंगे कि मुहर्रम और कर्बला की जंग में क्या हुआ था ?
मुहर्रम पर याद की जाती है कुर्बानी
इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम महीने के पहले दिन के साथ होती है, इसे हिजरी कैलेंडर के रूप में जाना जाता है। मुहर्रम के दिन अल्लाह के नेक बंदे की कुर्बानी के लिए याद रखा जाता है। मुहर्रम को पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, इसलिए मुहर्रम पर मातम मनाया जाता है। मुहर्रम पर कर्बला की जंग को भी याद किया जाता है। मुहर्रम का महीना त्याग और बलिदान की याद दिलाता है। मुहर्रम बकरीद के 20 दिन बाद मनाया जाता है। मुहर्रम पर हुसैन की याद में ताजिया उठाया जाता है और मुस्लिम समुदाय के लोग मातम मनाते हुए रोते हैं।
कर्बला के जंग की कहानी को जानिए
हजरत इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ मोहर्रम माह के 10वें दिन कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे। उन दिनों इराक में यजीद नाम का अत्याचारी बादशाह राज करता था। उसे अल्लाह पर विश्वास नहीं था। वो चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन भी उनके समर्थन में आ जाएं। हालांकि इमाम साहब इस बात के खिलाफ थे। उन्होंने बादशाह यजीद के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया।
इमाम हुसैन और उनके परिवार के बच्चों को भी नहीं बख्शा था बादशाह ने
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, आज से 1400 साल पहले कर्बला की लड़ाई में मोहम्मद साहब के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हुए थे। ये लड़ाई इराक के कर्बला में हुई थी। लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को भूखा-प्यासा शहीद कर दिया गया था। इसलिए मोहर्रम में सबीले लगाई जाती हैं, पानी पिलाया जाता है, भूखों को खाना खिलाया जाता है। कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाया था, इसलिए मुहर्रम को इंसानियत का महीना माना जाता है।
ताजिया का महत्व
ताजिया आशूरा में बहुत खास महत्व रखता है। ताजिया को अलग-अलग चीजों से बनाया जा सकता है, जैसे- सोने, चांदी, लकड़ी, बांस, स्टील, कपड़े और रंग-बिरंगे कागज।
ताजिया को सोने, चांदी, लकड़ी, बांस, स्टील, कपड़े और रंग-बिरंगे कागज से मकबरे के आकार में बनाया जाता है।
आशूरा के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ताजिया और जुलूस निकलते हैं और शोक मनाते हैं। कुछ लोग अपने पीठ पर चाबुक से मरते हैं, कुछ अपने सर पर शीशे को फोड़ते हैं और भी कई तरह से लोग इस मातम में शामिल होते हैं।
मुहर्रम में देशभर में ताजिये का जुलूस निकाला जाता है। ताजिये का जुलूस इमामबारगाह से निकलता है और कर्बला में जाकर खत्म होता है। कहा जाता है ताजिये की शुरुआत मुस्लिम शासक तैमूर के दौर में हुई थी। इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप में बनाई जाने वाली बड़ी-बड़ी कलाकृतियों को ताजिया कहा जाता है।
मुहर्रम का महत्व (Muharram 2024 Significance)
बता दें, मुस्लिम रीति-रिवाजों से मुहर्रम को अलग माना जाता है, क्योंकि यह महीना शोक का होता है। मुहर्रम के दिन लोग इमाम हुसैन के पैगाम को लोगों तक पहुंचाते हैं। ऐसा बताया जाता है कि हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। इसी कारण मुहर्रम के दिन शोक मनाया जाता है।