Kanwar Yatra: ‘Shopkeepers will face economic death’, Supreme Court’s comment on nameplate dispute
नई दिल्ली। कांवड़ यात्रा मार्ग पर होटलों को अपने मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। कोर्ट ने एनजीओ एसोसिएशन ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा याचिका दाखिल की गई। जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने मामले की सुनवाई की।
पुलिस सख्ती से लागू करवा रही आदेश: याचिकाकर्ता
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या यह प्रेस स्टेटमेंट था या औपचारिक आदेश था कि इन्हें प्रदर्शित किया जाना चाहिए? याचिकाकर्ताओं के वकील ने जवाब दिया कि पहले एक प्रेस स्टेटमेंट था और फिर लोगों में आक्रोश था और वे कहते हैं कि यह स्वैच्छिक है लेकिन वे इसे सख्ती से लागू कर रहे हैं। वकील ने कहा कि कोई औपचारिक आदेश नहीं है, बल्कि पुलिस सख्त कार्रवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह एक छद्म आदेश है।
एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने कहा,”अधिकांश लोग बहुत गरीब सब्जी और चाय की दुकान के मालिक हैं और इस तरह के आर्थिक बहिष्कार के अधीन होने पर उनकी आर्थिक मृत्यु हो जाएगी। अनुपालन नहीं करने पर दुकानदारों को बुलडोजर कार्रवाई का सामना करना पड़ा है।”
वेजिटेरियन के साथ तो धोखा होगा- सुप्रीम कोर्ट
वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्वेच्छा के नाम पर जबरन आदेश लागू किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई वैजिटेरियन है तो आखिर उसके साथ धोखा होगा, अगर उसे पता ना हो कि वो किस तरह की दुकान में भोजन कर रहा है?
मामले को बढ़ा चढ़ाकर मत बताइए- SC
जस्टिस भट्टी ने याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि आप इस मामले को ऐसे बढ़ा चढ़ाकर मत बताइए. वैसा ही बताइए जैसा जमीन पर है. इस मामले के तीन पहलू हैं- सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता. ये तीनों समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. कोर्ट ने पूछा कि होटल, ढाबों पर नाम लिखने का आदेश, शासन का आदेश है या प्रेस रिलीज? जिसपर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि माई लॉर्ड, यह एक छद्म आदेश है.
SC के जज ने बताया अपना ये अनुभव
सुप्रीम कोर्ट के जज ने अपना निजी अनुभव बताया कि केरल में एक वेजिटेरियन होटल था और बाद में बता चला कि वह मुस्लिम का था. याचिकाकर्ता के वकील सीयू सीयू सिंह ने कहा यूपी प्रशासन दुकानदारों पर दबाव डाल रहा है कि वो अपने नाम और मोबाइल नंबर लिखे। यह सिर्फ ढाबा तक सीमित नहीं है, रेहड़ी पटरी वालों पर भी दबाव बनाया जा रहा है ताकि एक विशेष समुदाय का आर्थिक बहिष्कार किया जा सके.
यह आदेश तो स्वैच्छिक है यह मेंडेटरी नहीं है- SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आदेश तो स्वैच्छिक है यह मेंडेटरी नहीं है. वकील सी यू सिंह ने कहा कि हरिद्वार पुलिस ने इसको लागू किया है. वहां पुलिस की तरफ से चेतावनी दे गई की अगर ऐसा नहीं करते तो कार्रवाई होगी. मध्यप्रदेश में भी इस तरह की करवाई की बात की गई है. वकील ने कहा, मैं प्रेस रिलीज से पढ़ रहा हूं. इसमें लिखा है कि अतीत में कांवड़ यात्रियों को गलत चीजें खिला दी गईं, इसलिए विक्रेता का नाम लिखना अनिवार्य किया जा रहा है. आप शाकाहारी, शुद्ध शाकाहारी, जैन आहार लिख सकते हैं, लेकिन विक्रेता का नाम लिखना क्यों जरूरी है? इस पर जज ने कहा कि इसमें तो स्वैच्छिक लिखा है.
इस पर दूसरी याचिकाकर्ता महुआ मोइत्रा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, यह स्वैच्छिक नहीं, अनिवार्य है. वकील सी यू सिंह ने कहा, पुलिस को ऐसा करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. हरिद्वार पुलिस का आदेश देखिए, कठोर कार्रवाई की बात कही गई है. यह हजारों किलोमीटर का रास्ता है. लोगों की आजीविका प्रभावित की जा रही है.
आदेश विक्रेताओं के लिए आर्थिक मौत की तरह- सिंघवी
सिंघवी ने कहा, दुकानदार और स्टाफ का नाम लिखना जरूरी किया गया है. यह Exclusion by Identity (पहचान के आधार पर बहिष्कार) है. नाम न लिखो तो व्यापार बंद, लिख दो तो बिक्री खत्म. याचिकाकर्ता ने कहा कि यह विक्रेताओं के लिए आर्थिक मौत की तरह है. वहीं, महुआ मोइत्रा की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा की इसमें विक्रेताओं को बड़े बोर्ड की जरूरत है, जिसमें सारी जानकारी साझा करनी होगी. अगर शुद्ध शाकाहारी होता तो बात समझ आती.