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SC/ST कोटे में कोटा पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर, 6-1 से सुनाया फैसला,कोटा के अंदर कोटा को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी,कहा- राज्यों को सब-कैटेगरी करने का हक

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Supreme Court approves quota within SC/ST quota, gives verdict 6-1, Supreme Court approves quota within quota, says states have the right to make sub-categories

Supreme Court on SC/ST Quota: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के भीतर सब-कैटेगरी करने की अनुमति दे दी है। SC/ST कोटा के अंदर कोटा देने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST आरक्षण में जाति आधारित आरक्षण को संभव बताया है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने गुरुवार (1 अगस्त) को ये फैसला 6:1 से सुनाया है।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को सुनाते हुए ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के 2004 के फैसले को पलट दिया है, जिसमें पांच जजों की बेंच ने कहा था कि सब-कैटेगरी की अनुमति नहीं है, क्योंकि एससी/एसटी एक ही कैटेगरी बनाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि, ईवी चिन्नैया फैसले मामले में कुछ खामियां थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘हालांकि आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है. इस सब-कैटेगरी का आधार यह है कि एक बड़े समूह मे से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है.’

जस्टिस गवई ने दिया अंबेडकर के भाषण का हवाला

7 जजों वाली इस संवैधानिक पीठ में शामिल जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि सामाजिक लोकतंत्र की आवश्यकता पर दिए गए बीआर अंबेडकर के भाषण का हवाला दिया. जस्टिस गवई ने कहा कि पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के केवल कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि एससी/एसटी के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है.’

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने 2004 में दिए गए 5 जजों के फैसले को पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के फैसले में कहा था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को उप श्रेणियों में बांटने का अधिकार नहीं है. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के इस फैसले का अर्थ ये होगा कि राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति जनजाति में सब-केटेगरी बनाने का अधिकार होगा.

 

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