Home छत्तीसगढ़ 22 जनवरी को 10 हजार दीपकों से जगमग होगा तुरतुरिया

22 जनवरी को 10 हजार दीपकों से जगमग होगा तुरतुरिया

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श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह को भव्य बनाने वन विभाग का विशेष आयोजन

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सौरभ बरवाड़@बलौदाबाजार-,20 जनवरी 2024/ अयोध्या में श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह को भव्य बनान के उद्देश्य से श्री राम वन गमन परिपथ में शामिल,मान्यता अनरूप लव कुश की एतिहासिक जन्मस्थली तुरतुरिया मे वन विभाग द्वारा विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। जिसके तहत 22 जनवरी को शाम 5 बजे के बाद सूरज ढलते ही 10 हजार दीपकों से जगमग कराया जाएगा।
वन विभाग एवं जिला प्रशासन द्वारा इसकी प्रारंभिक तैयारी पूरी कर ली गई है। कार्यक्रम में सब की सहभागिता हो इसके लिए आस पास के ग्रामीणों को भी इस कार्यक्रम में जोड़ा जा रहा है।
तुरतुरिया को एक व्यवस्थित पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने लिए जिला प्रशासन के सहयोग से वन विभाग द्वारा अनेक विकास के कार्य कराएं गए हैं. जिससे तुरतुरिया की भव्यता में न केवल चार चांद लग गया है बल्कि पर्यटकों की संख्या में काफी इफाजा हुई है। तुरतुरिया आने वाले पर्यटकों को पहले के मुताबिक अधिक सुविधा उपलब्ध हो रही है। तुरतुरिया में अभी भव्य प्रवेश द्वार,आईटीसी भवन पैगोड़ा युक्त गार्डन,शपिंग दुकानें, व्यवस्थित पार्किंग स्थल, इंटरनेशनल स्तर की बाथरूम सहित अन्य निर्माण कार्य कराएं गए है। इन निर्माण कार्यों में विशेष प्रकार के कार्बन युक्त लोहे का रॉड का उपयोग किया गया है. इस लोहे की खास बात यह है कि इनकी आयु अधिक एवं जंग प्रतिरोध होता है। साथ इसकी सुंदरता बढ़ाने के लिए जय श्री राम से उकेरे हुए कट आउट आयरन शिल्ट का भी उपयोग किया गया है। पूरे निर्माण कार्य के दाैरान बिजली सहित अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा फिर भी आज समय सीमा में लगभग सभी निर्माण कार्य पूर्ण हो गए है।पार्किंग के संचालन एवं व्यवस्थित साफ- सफाई हेतु आसपास गांवों की सक्रिय महिला समितियां को वन विभाग एवं जिला प्रशासन द्वारा तैयार किया जा रहा है। ताकि उनको उनको अतरिक्त आमदनी मिल सके एवं बेतरकीब वाहनों की अव्यवस्थाओं से मुक्ति मिले। छुट्टी के दिनों में लगभग छोटे बड़े मिलाकर 500 से अधिक वाहन तुरतुरिया आ जाते है।

गौरतलब है कि तुरतुरिया एक प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल है। जो राजधानी रायपुर से 84 किमी एवं बलौदाबाजार जिला से 29 किमी दूर कसडोल तहसील से 12 और सिरपुर से 23 किमी की दूरी पर स्थित है.जिसे तुरतुरिया के नाम से जाना जाता है। उक्त स्थल को सुरसुरी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थल प्राकृतिक दृश्यों से भरा हुआ एक मनोरम स्थान है जो कि पहाड़ियो से घिरा हुआ है। इसके समीप ही बारनवापारा अभ्यारण भी स्थित है। तुरतुरिया बहरिया नामक गांव के समीप बलभद्री नाले पर स्थित है। जनश्रुति है कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यही पर था और लवकुश की यही जन्मस्थली थी।
इस स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानों के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमें से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है। इसका जलप्रवाह एक लम्बी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक जलकुंड में गिरता है जिसका निर्माण प्राचीन ईटों से हुआ है। जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर एक गाय का मोख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दृष्टिगोचर होता है। गोमुख के दोनों ओर दो प्राचीन प्रस्तर की प्रतिमाए स्थापित हैं जो कि विष्णु जी की हैं इनमें से एक प्रतिमा खडी हुई स्थिति में है तथा दूसरी प्रतिमा में विष्णुजी को शेषनाग पर बैठे हुए दिखाया गया है। कुंड के समीप ही दो वीरों की प्राचीन पाषाण प्रतिमाए बनी हुई हैं जिनमें क्रमश: एक वीर एक सिंह को तलवार से मारते हुए प्रदर्शित किया गया है तथा दूसरी प्रतिमा में एक अन्य वीर को एक जानवर की गर्दन मरोड़ते हुए दिखाया गया है। इस स्थान पर शिवलिंग काफी संख्या में पाए गए हैं इसके अतिरिक्त प्राचीन पाषाण स्तंभ भी काफी मात्रा में बिखरे पड़े हैं जिनमें कलात्मक खुदाई किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ शिलालेख भी यहां स्थापित हैं। कुछ प्राचीन बुध्द की प्रतिमाएं भी यहां स्थापित हैं। कुछ भग्न मंदिरों के अवशेष भी मिलते हैं। इस स्थल पर बौध्द, वैष्णव तथा शैव धर्म से संबंधित मूर्तियों का पाया जाना भी इस तथ्य को बल देता है कि यहां कभी इन तीनों संप्रदायो की मिलीजुली संस्कृति रही होगी। ऎसा माना जाता है कि यहां बौध्द विहार थे जिनमे बौध्द भिक्षुणियों का निवास था। सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है कि यह स्थल कभी बौध्द संस्कृति का केन्द्र रहा होगा। यहां से प्राप्त शिलालेखों की लिपि से ऎसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओं का समय 8-9 वीं शताब्दी है। आज भी यहां स्त्री पुजारिनों की नियुक्ति होती है जो कि एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। साथ ही पहाड़ में स्थित मातादेवालय का अलग ही महत्व एवं आस्था का केंद्र हैं। पूष माह में यहां तीन दिवसीय मेला लगता है तथा बड़ी संख्या में श्रध्दालु यहां आते हैं। धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

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