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एक चमत्कार… और बन गया ऐसा ‘संत’ कहलाता है ईश्वर का प्रचारक 15 साल का वो लड़का, जिसने मौत के बाद किया चमत्‍कार,

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A miracle… and became such a ‘Saint’, a preacher of God, a 15 year old boy, who performed a miracle after death,

कम उम्र में संत बनने के कई मामले आपने सुने होंगे. गुजरात के सूरत में एक बड़े हीरा कारोबारी की 8 साल की बेटी देवांशी जैन ने आलीशान जिंदगी छोड़कर संन्यास ले लिया. तो वहीं, इंदौर के मुनिराज बाल संत रम्यरत्न सिर्फ 7 साल की उम्र में संत बन गए थे. लेकिन जब इन्‍हें संत घोषित किया गया, तो इनके पास चमत्‍कार‍िक शक्‍त‍ियां नहीं थीं. लेकिन अब 15 साल के एक ऐसे लड़के को संत की उपाध‍ि मिलने जा रही है, ज‍िसने मौत के बाद चमत्‍कार किया है. उसे ईश्वर का प्रचारक कहा जाता है. उसकी कही बातें, उसकी मौत के बाद सच साबित हुई हैं.
हम बात कर रहे हैं लंदन में पैदा हुए कार्लो अकुतिस की. कार्लो अकुतिस को ल्यूकेमिया की बीमारी थी और 2006 में जब उसकी मौत हुई तो वो महज 15 साल का था. लेकिन इस छोटी सी उम्र में उसने ऐसे-ऐसे चमत्‍कार क‍िए, ज‍िसने पोप फ्रांसिस तक को ह‍िलाकर रख दिया. उसे गॉड इंफ्लुएंसर और इंटरनेट का संरक्षक संत (Patron Saint Of Internet) तक कहा जाता था. यही वजह है क‍ि मौत के 18 साल बाद पोप फ्रांस‍िस उसे कैथोलिक चर्च का पहला सहस्राब्दि संत घोषित करने जा रहे हैं. जहां उसे मृत्यु के बाद कई तरह के चमत्‍कार करने का श्रेय दिया जाएगा. कार्लो अकुतिस का पार्थिव शरीर असीसी शहर में प्रदर्शन के लिए रखा गया है. वह अपने पसंदीदा नाइकी के जूते, जींस और स्वेटशर्ट पहने नजर आता है.

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मम्‍मी-पापा से कहा, मैं मरकर खुश हूं

ब्रिटेन के एक मर्चेंट बैंकर के घर पैदा हुए कार्लो अकुतिस पांच साल की उम्र से ही अपना जेबखर्च गरीबों में दान कर देता था. स्‍कूल में उत्पीड़न के शिकार लोगों की सहायता करता था. गरीबों को खाना पकाने का सामान बांटता था. उन्‍हें घर में रखा कंबल ले जाकर दे आता था. जब उसे पता चला क‍ि ल्यूकेमिया हो गया है और वो मरने वाला है, तो उसने मम्‍मी-पापा से कहा, मैं मरकर खुश हूं. क्‍योंक‍ि मैंने अपनी जिंदगी में कोई ऐसा काम नहीं क‍िया, जिससे ईश्वर दुखी हों. मौत के लगभग 18 साल बाद अब उसके चमत्‍कारों को पोप फ्रांसिस मान्‍यता देने जा रहे हैं. उन्‍होंने कहा, 2 साल पहले कार्लो ने जो चमत्‍कार किया, वो कोई संत ही कर सकता है.

जब उसे भगवान का दूत मानने लगे लोग

दरअसल, 2022 में कोस्‍टार‍िका की रहने वाली एक मह‍िला की 21 वर्षीय बेटी कॉलेज जाते समय बाइक एक्‍स‍ि‍डेंट में गंभीर रूप से घायल हो गई. उसकी ब्रेन में चोट आई और रक्‍तस्राव होने लगा. उसकी सर्जरी हुई, लेकिन वह कोमा में चली गई. छह दिन बाद मह‍िला इटली में कार्लो की कब्र पर गई और अपनी बेटी के ल‍िए प्रार्थना की. चर्च का दावा है क‍ि मह‍िला जब कब्र से लौटी तो उसकी बेटी के अंग फ‍िर से काम करने लगे थे. वह कोमा से बाहर आ चुकी थी और बोलने लगी थी. उसके मस्‍त‍िष्‍क में जो रक्तस्राव हो रहा था, वह बंद था. उसके सिर पर सर्जरी की वजह से जो निशान थे, वह भी गायब हो गए थे. इतना ही नहीं, सिर्फ 10 दिन में उसे अस्‍पताल से छुट्टी मिल गई. यह खबर इतनी तेजी से फैली कि कार्लो को गॉड का दूसरा रूप माना जाने लगा. ठीक इसी तरह कार्लो ने 2013 में एक दुर्लभ अग्नाशय रोग से पीड़ित ब्राजील के एक लड़के को ठीक करने के लिए स्वर्ग से मध्यस्थता भी की थी. कहते हैं क‍ि उसने एक वेबसाइट भी बनाई, जिसमें उसके चमत्‍कारों का डेटाबेस है. अब पोप फ्रांसिस उन सभी चमत्‍कारों को सत्‍य बताते हुए उसे संत की उपाध‍ि देने जा रहे हैं.

बचपन में ही बन गया कम्प्यूटर का विद्वान

जिस लड़के की 15 साल की उम्र में मौत हो गई उसका जन्म 1991 में लंदन में हुआ था। इसका नाम कार्लोस एक्यूटिस (Carlos Acutis) था। इसके बाद उसके बचपन में ही उनका परिवार अपने इतालवी माता-पिता, एंड्रिया एक्यूटिस और एंटोनिया साल्ज़ानो के साथ मिलान चले गए थे। कार्लोस बचपन से ही बेहद प्रतिभावान शख्स रहा था। कंप्यूटर शिक्षा में वो पारंगत था। जितनी उसकी शिक्षा नहीं थी उससे ज्यादा का वो ज्ञान रखता था। कार्लोस ने रोमन कैथोलिक (Roman Catholic) की शिक्षा को ऑनलाइन फैलाया था, जिससे इस शिक्षा की पहुंच हर एक वर्ग और हर एक शख्स तक हो गई थी। उनके इस काम से लोग इतना प्रभावित हुए कि उन्हें भगवान के फरिश्ते के तौर पर जाना जाने लगा तो कोई उन्हें इंटरनेट के संरक्षक संत की उपाधि भी देता था।

प्राइमरी स्कूलिंग में ही सीख ली कोडिंग

जब कार्लोस स्कूल के शुरुआती दिनों में थे, तब उन्होंने विश्वविद्यालय की कंप्यूटर साइंस की किताब पढ़ ली थी और इसकी शिक्षा का प्रयोग करके वो खुद कोडिंग करना सीख गए थे और फिर दूसरे साथियों को भी सिखाते थे। इसके बाद उन्होंने वीडियो एडिटिंग और एनीमेशन भी सीख लिया था। अपनी स्कूलिंग पूरी करने से पहले ही उनकी साल 2006 में ल्यूकेमिया (बल्ड कैंसर) से इटली के मोन्जा में मौत हो गई थी। जो पूरे कैथोलिक धर्म के लिए एक गहरा सदमा था।

क्या थे कार्लोस के चमत्कार?

इंटरनेट के संरक्षक संत के तौर पर पहचाने जाने वाले कार्लोस ने अपने चमत्कारों को लेकर एक वेबसाइट बनाई थी। जिसकी देखभाल इटली में कुछ स्थानीय कैथोलिक संगठनों ने की थी।

पहला चमत्कार

कार्लोस को संत तब से माना जाने लगा जब साल 2020 में एक 7 साल का बच्चा अपनी जन्मजात और जानलेवा बीमारी से ठीक हो गया। ब्राजील के इस बच्चे को अग्नाशय की बीमारी थी। वो कुछ भी ठोस पदार्थ नहीं खा पाता था। बचपन से ही उसे सिर्फ लिक्विड डाइट (तरल भोजन) पर रखा गया था। इस बच्चे को लेकर उसका परिवार प्रार्थना सेवा में आया था। कहा जाता है कि इस बच्चे ने सिर्फ कर्लोस की एक टी-शर्ट छू लिया था। फिर उसके माता-पिता ने अपने बच्चे की ठीक होने की कामना की। कुछ देर बाद बच्चे ने अपनी मां से कहा कि वो बहुत ठीक महसूस कर रहा है। इतना ही नहीं बचपन से ही लिक्विड डाइट पर रहने वाले इस 7 साल के बच्चे ने अपनी मां से खाने के लिए कुछ ठोस पदार्थ भी मांगा और खाया भी। इस कार्लोस का चमत्कार माना गया। हालांकि इस घटना का पोप फ्रांसिस ने खुद जांचा-परखा तब जाकर उन्होंने इसे चमत्कार की मान्यता दी।

दूसरा चमत्कार

कार्लोस का दूसरा चमत्कार था कोस्टा रिका की एक लड़की को ठीक करने का…दरअसल ये लड़की इटली की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही थी। एक साइकिल दुर्घटना में इसके सिर पर गंभीर चोट लग गई थी। इटालियन बिशप्स कॉन्फ्रेंस के अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक लड़की की मां एवेनिरे कार्लोस की कब्र पर गई थी और वहां जाकर अपनी बेटी के ठीक होन की प्रार्थना की थी। ठीक इसके कुछ दिन बाद बच्ची की चोट बिल्कुल ठीक हो गई थी उसे वेंटिलेटर से भी हटा दिया गया था। लड़की की मां ने दावा किया था कि कार्लोस ने ही उनकी बच्ची को ठीक किया है।

पोप फ्रांसिस मान्यता दें तो बन जाता है मिलेनियल संत

कैथोलिक धर्म के मुताबिक पोप फ्रांसिस जब खुद किसी के दो चमत्कारों को मान्यता दे देते हैं तो वो शख्स संत बन जाता है या उसे संत की उपाधि दी जाती है। बता दें कि अब तक पोप फ्रांसिस ने 912 लोगों को संत घोषित किया है। इसमें से आखिरी संत का जन्म 1926 में हुआ था और अब घोषित हुए संत कार्लोस का जन्म 1991 में हुआ है।

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