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200 साल पुरानी परंपरा आज भी सारंगढ़ में बरकरार,दशहरा के दिन होगी गढ़ विच्छेद प्रतियोगिता

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200 years old tradition still continues in Sarangarh, Garh Vichhed competition will be held on Dussehra

गढ़ भेदना था नामुमकिन यही वजह बना रियासतकालीन सारंगढ गढ़ विच्छेद खेल

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पान पानी पा लागी की नगरी में सारंगढ में राजपरिवार की 200 साल पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है।

दिलीप टंडन/रीडर्स फर्स्ट न्यूज रियासतकाल के दौरान राजा अपने गढ़ को बचाए रखने में सफल होने की खुशी के तौर पर विजयादशमी के अवसर पर गढ़ विच्छेद प्रतियोगिता परंपरागत तरीके से धूमधाम से गढ़ चौक में मनाया जाता है। आलम यह है कि आयोजित प्रतियोगिता में सैकड़ो गांव के साथ साथ पड़ोसी राज्यों से भी लोग इस आयोजन में हिस्सा लेते है। जिसकी तैयारी अब राजपरिवार के देख रेख में संबंधित समिति की तैयारी अंतिम चरण में है।

पौराणिक कथाओं में दहशरा के दिन नीलकंठ पक्षी को देखना शुभ होता है यही वजह है कि सारंगढ़ राजपरिवार के राजा के द्वारा शांति और समृद्धि के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को खुले गगन मे विजयादशमी में छोडक़र किया जाता है।
जिसके उपरांत कई कार्यक्रम राजपरिवार शाही अंदाज में करती हैं इसी में गढ़ विच्छेद का खेल भी है। गढ़ उत्सव लगभग 200 साल से भी पुरानी परम्परा है। गढ़ विच्छेद में गढ़ को मिट्टी के टीले के रूप में बनाया जाता है।
जिसके सामने का हिस्सा 50 फीट की मोटाई से मिट्टी का टीला कम होते होते ऊंची होते जाती है। यह लगभग 40 फीट की ऊंचाई पर जाकर यह टीला तीन फीट चौड़ी ही रह जाती है। ऊपर चढ़ने के लिए पीछे से सीढ़ी से सुरक्षा प्रहरी टीला से ऊपर मे रहते है। टीला के स्थापना के ठीक सामने लगभग 15 फीट चौड़ा तथा 10 फीट गहरा तालाब नुमा गड्ढा बनाई जाती है। यह पानी से भरा रहता है।

वहीं मिट्टी के टीले यानी गढ़ मे नुकीला हथियार से गड्ढा करके ऊपर चढ़ने का खेल होता है, समीप मे लाल रंग का सीमा रेखा बनी रहती जिसके बीचों बीच में चढ़ना रहता है। जिसमे उन्हे ऊपर के सुरक्षा प्रहरियों से लोहा लेना होता है। सुरक्षा पहरी चढ़ने से रोकने पानी व लाठी ,तथाअन्य वस्तुओ से उपर आने से रोकते है। पूर्व रियासत काल मे राजा के सेना यहां ऊपर मे रहते थे जबकि वर्तमान आयोजन समिति के वालेंटियर व उत्सव सहयोगी रहते है।

प्रतिभागी मिट्टी के टिले को नुकीले औजार से गड्ढा खोदकर ऊपर चढ़ने का प्रयास करते है जो प्रतिभागी सुरक्षा प्रहरियों से जद्दोजहद कर गढ़ मे चढ़ने मे सफल होते हैं उन्हे गढ़ विजेता का पदवी दिया जाता है। ततपश्चात राज परिवार के परंपरा अनुसार उसके हाथों से कुलदेवी मंदिर में पूजा अर्चना भी कराया जाता है और नगद राशि एवं शील्ड से पुरुस्कृत किया जाता है। जिसकी तैयारियां जोरों पर चलते हुए अंतिम चरण में है जिसमें कल गढ़ विच्छेद खेल प्रतियोगिता का आयोजन होगा इसकी ख्याती इतनी है कि ओड़िसा व छत्तीसगढ़ के जशपुर व आसपास के जिले से लोगो का हुजूम हजारों की संख्या में देखने के लिए आते है।

उत्सव से नामकरण चौक और क्षेत्र का नाम भी नामकरण

सारंगढ़ से बिलासपुर मार्ग चौक मौजूद है जहां पर यह प्रतियोगिता आयोजन की जाती है। रियासत काल के दौर से प्रतियोगिता आयोजन होने से इस चौक का नामकरण भी गढ़ चौक के रूप में हो चुका है । प्रमाणित तौर शासकीय दस्तावेज में इसका उल्लेख भी है। जबकि आसपास के क्षेत्र को गढ़ चौक क्षेत्र कहा जाता है।

प्रदेश का एक मात्र उत्सव में हो चूके नामचीन हस्ति

यह उत्सव पूर्व में प्रदेश में एक मात्र सारंगढ़ अंचल में ही आयोजित किया जाता है। जिसकी ख्याति देश भर में रही है।हालांकि समय के साथ यह उत्सव स्थानीय स्तर तक ही सिमट कर रह गया है। गढ़ विच्छेदन उत्सव पर पूर्व में नामचीन हस्तियां शिरकत कर चुकी हैं। राजपरिवार के राजा स्व. नरेशचंद्र सिंह अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके आमंत्रण पर मप्र के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. रविशंकर शुक्ल, स्व. कैलाशनाथ काटजू तथा गोविंद सिंह मंडलोई सहित कई केन्द्रीय तथा राज्य कैबिनेट के मंत्री इस उत्सव में शामिल हो चुके हैं।

अनूठा और समृद्ध शाली आयोजन में चुना जाता था सेनापति

गढ़ विच्छेद का परंपरा ही अनूठा है। इस खेल प्रतियोगिता को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित है जिसमें रियासत काल मे कोई भी राजा इस सारंगढ़ राजपरिवार पर कब्जा नही जमा पाया था।बताया जाता है तत्कालीन राजा द्वारा प्रधान सेना पति चुनाव किया जाता था। विदित हो कि सेनापति, सेनाओं का सबसे मजबूत अंग है ठीक उसी प्रकार इसका चयन भी कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद होता था,जिसमें राजमहल की दीवारों पर चढ़ाई व अन्य कई कलाओं में कला को परखा जाता था। इसी में एक गढ़ चढ़ाई भी था। जो विजयादशमी में होती है।

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