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तीसरे दिवस पर उतंग और आस्तिक की कथा सुनाकर प्रतिशोध और परोपकार के मूल सिद्धांतों को बताया

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On the third day, the basic principles of revenge and charity were explained by narrating the story of Uttanga and Astik

■ देवी भागवत में जरत्कारु मुनि के रोचक चरित्रों का, आस्तिक के द्वारा नाग यज्ञ बंद करवाने की कथा को विस्तार से बताया

■ उतंग मुनि के गोबर सेवन करने की कथा और रानी के कुंडल तक्षक के चुराने की कथा ने लोगो मे हास्य भर दिया

■ स्वार्थ का उद्देश्य जब प्रतिशोध और परोपकार हो तो कौन सा जीवन के लिए महत्वपूर्ण है और कैसे संतो का आदर सम्मान करना चाहिए उसकी शिक्षा कथा के माध्यम से दी गई

सौरभ बरवाड़/भाटापारा :- भाटापारा में नागरिक ज्ञान यज्ञ समिति के द्वारा कल्याण क्लब मैदान निहलानी हॉस्पिटल के सामने मध्यप्रदेश के जिला जावरा निवासी संत बालयोगी विष्णु अरोड़ा जी के मुखारविंद से 6 जनवरी से 14 जनवरी तक श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथा का आयोजन जारी है । जिसके तीसरे दिवस पर कथावाचक पूज्य पाद श्री विष्णु अरोड़ा जी ने श्रद्धालुओं को कथा बताया की देवी भागवत के चार वक्ता और चार स्रोता है जिसमे नारद जी के द्वारा कृष्ण के पिता वासुदेव जी को कथा सुनाते हैं। दूसरे में वशिष्ठ जी, सुद्युम्न को कथा सुनाते हैं तीसरे नंबर पर लोमस ऋषि कथा राजा दुर्दम कथा सुनते हैं और चौथा नंबर बाकी था, देवी भाग्य भागवत के मुख्य स्रोत और वक्त यही चौथे नंबर के हैं जिसमे वक्ता के रूप में वेद व्यास जी कथा सुनाते हैं और जनमजेय कथा सुनते है । आज कथा वाचक अरोड़ा जी के द्वारा उतंग मुनि और आस्तिक मुनि की कथा सुनाई । उतंग मुनि को स्वार्थ था बदला और प्रतिशोध लेने का और आस्तिक को स्वार्थ था अपने कुल की रक्षा करने का । स्वार्थ दोनों के अंदर था लेकिन एक चीज ध्यान रखने योग्य है की जहां आस्तिकता पैदा होती है वहां दया परोपकार है। लेकिन उतंग मुनि का स्वार्थ था केवल बदला और प्रतिशोध का । चर्चा हमेशा आस्तिक मुनि की होनी चाहिए आस्तिक के पद चिन्हों पर चलकर जीवन आगे बढ़ाना चाहिए । समाज में ऐसे लोगों की पूजा होनी चाहिए जो आस्तिकता की रक्षा करें, समाज की रक्षा करें । अगर हमारे धर्मशास्त्र,ग्रंथ, पुराण का को ध्यान से समझे तो जीवन के पग पग पर जीवन जीने की कला हमको सीखने को मिलती है। इन कथाओं को मैं सामने इसीलिए रख रहा हूं ताकि हम जीवन को कैसे जिये। हमारा कर्म कैसा हो, उतंग मुनि ने शिक्षा तो पूरी अर्जित की, ज्ञान में कोई कमी नहीं, लेकिन ज्ञान का जीवन में उतंग मुनि उपयोग नहीं कर पाए। ज्ञान को जीवन के कल्याण के लिए नहीं केवल प्रतिशोध के लिए उपयोग किया और आस्तिक ने अपने जीवन को स्वयं के साथ-साथ दूसरों की रक्षा करने के लिए लगाया यह अंतर है आस्तिक और उतंग में यह अंतर है दो चरित्रों का । इसलिए मैं निवेदन करता हूं संतों का सम्मान हम करें, बहुत अच्छी बात है हमको करना भी चाहिए संतों का सम्मान, सेवा, आदर लेकिन एक बात का ध्यान आपको जरूर रखना पड़ेगा की जीवन में कोई उतंग मुनि की तरह से अपने प्रतिशोध को पूरा करने के लिए आपको माध्यम ना बनाएं बल्कि ऐसा संत जो आस्तिक मुनि बनकर परोपकार और दया को लेकर चले तो हमारे जीवन का कल्याण होगा हमारा जीवन पवित्र होगा।

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