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वोट के बदले नोट मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला ,MP-MLA को घूसखोरी की छूट नहीं

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Supreme Court’s historic decision in the note-for-vote case, no exemption for MP-MLA from bribery

क्या सांसदों और विधायकों को संसद या विधानसभा में भाषण देने या वोट डालने के लिए रिश्वत लेने पर अभियोजन से छूट है? इसे लेकर अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. वोट के बदले नोट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए 1998 के नरसिम्हा राव जजमेंट के अपने फैसले को पलट दिया और सांसदों-विधायकों को कानूनी संरक्षण देने से इनकार कर दिया. जिसमें सांसदों/विधायकों को संसद में मतदान के लिए रिश्वतखोरी के खिलाफ मुकदमा चलाने से छूट दी गई थी।

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CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ ने सुनाया फैसला
इस फैसले को खारिज करने वाली सात न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने किया। पीठ ने अक्टूबर 2023 के पहले सप्ताह में दो दिनों तक दलीलें सुनी थीं।

वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा, “आज सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने कहा कि अगर कोई सांसद राज्यसभा चुनाव में सवाल पूछने या वोट देने के लिए पैसे लेता है, तो वे अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोट देने के लिए पैसे लेना या प्रश्न पूछना भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देगा…”

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में व्यवस्था दी कि कोई सांसद या विधायक संसद/विधानसभा में वोट/भाषण के संबंध में रिश्वतखोरी के आरोप में अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकता है। कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में अपने पिछले फैसले को बदल दिया। कोर्ट ने अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए इस मामले में सांसदों को किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया और कहा कि किसी को घूसखोरी की छूट नहीं दी जा सकती है। ऐसे में सांसदों को कानूनी संरक्षण से छूट की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

1998 का वह फैसला, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बदल दिया
1998 में पांच जजों की बेंच ने पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य (CBI/SPE) ने इसकी शाब्दिक व्याख्या की और माना कि विधायकों को संसद और विधान सभाओं में अपने भाषण और वोट से जुड़े मामलों में रिश्वत के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से छूट प्राप्त है।

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