Pune Porsche Crash: Giving a car to a minor can be dangerous! After the grandfather and father, now the Juvenile Board members are in the dock, two doctors have also been suspended
लग्जरी पोर्शे कार हिट एंड रन मामले में महाराष्ट्र सरकार ताबड़तोड़ कदम उठा रही है. हाई-प्रोफाइल मामले के संज्ञान में आने के बाद जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) आरोपी किशोर को मामूली दंड देने के साथ छोड़ दिया था. मामले के तूल पकड़ने के बाद उस फैसले को रद्द करते हुए आरोपी को ऑब्जर्वेशन सेंटर भेजने का निर्णय दिय गया था. अब महाराष्ट्र महिला एवं बाल विकास विभाग ने JJB के दो सदस्यों के खिलाफ जांच शुरू कर दी है. इसके लिए 4 सदस्यीय कमेटी गठित की गई है. तीन सदस्यीय JJB में एक कोर्ट और दो प्रदेश सरकार द्वारा नियुक्त मेंबर होते हैं. दूसरी तरफ, महाराष्ट्र सरकार ने अस्पताल के दो डॉक्टर और एक वार्ड ब्वॉय को सस्पेंड कर दिया है. इनपर आरोपी किशोर के ब्लड सैंपल को बदलने का आरोप है. इस मामले में आरोपी के दादा और पिता पहले ही कानून के शिकंजे में हैं.
महाराष्ट्र सरकार ने पुणे पोर्शे कार दुर्घटना मामले में एक समिति गठित की है जो किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के सदस्यों के आचरण की जांच करेगी. कमेटी यह भी देखेगी कि क्या मामले में आदेश जारी करते हुए नियमों का पालन किया गया था या नहीं. एक अधिकारी ने बताया कि राज्य महिला एवं बाल विकास विभाग (डब्ल्यूसीडी) ने पिछले सप्ताह 4 सदस्यीय समिति गठित की है. उन्होंने बताया कि इसका नेतृत्व विभाग का उपायुक्त पद का एक अधिकारी कर रहा है और इसके अगले सप्ताह तक अपनी रिपोर्ट सौंपने की संभावना है. पुणे के कल्याणी नगर में 19 मई को पोर्शे कार चला रहे नाबालिग आरोपी ने एक मोटरसाइकिल पर सवार दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर को कथित तौर पर टक्कर मार दी थी, जिससे उनकी मौत हो गई थी. पुलिस ने दावा किया कि 17 वर्षीय आरोपी नशे की हालत में कार चला रहा था.
JJB का पहला आदेश
JJB ने पोर्शे कार क्रैश के कुछ घंटों बाद नाबालिग को जमानत दे दी थी. JJB ने नाबालिग से सड़क दुर्घटनाओं पर 300 शब्दों का एक निबंध लिखने को कहा था. बोर्ड के इस कदम की काफी आलोचना हुई थी. महिला एवं बाल विकास विभाग के आयुक्त प्रशांत नारनवरे ने बताया कि JJB में न्यायपालिका का एक सदस्य और राज्य सरकार द्वारा नियुक्त दो लोग होते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने एक समिति गठित की है जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त JJB सदस्यों के आचरण की जांच करेगी और यह देखेगी कि कार दुर्घटना मामले में आदेश जारी करते हुए नियमों का पूरी तरह पालन किया गया या नहीं.’
2 डॉक्टर सस्पेंड
पुणे हिट एंड रन मामले में सूत्रों के हवाले से बड़ी खबर सामने आई है. महाराष्ट्र सरकार ने डॉ. अजय तावरे, डॉ. श्रीहरि हलनोर और वार्ड ब्वॉय को सस्पेंड कर दिया है. जांच कमिटी की रिपोर्ट के बाद महाराष्ट्र सरकार ने बड़ा एक्शन लिया है. ये तीनों आरोपी नाबालिग का ब्लड सैंपल चेंज करने के मामले में आरोपी हैं. बता दें कि इस मामले में आरोपी के पिता और दादा पहले ही पुलिस की गिरफ्त में हैं.
नाबालिग बेटे की गलती पर ऐसे फंसे पिता
नाबालिग आरोपी लड़के पिता विशाल अग्रवाल एक रियल एस्टेट कारोबारी हैं। इस परिवार का पुणे में काफी दबदबा है। पुलिस ने इस मामले आरोपी के पिता के खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 75 और 77 के तहत केस दर्ज किया था। इस कानून की धारा 75 बच्चों के प्रति क्रूरता, जबकि सेक्शन 77 बच्चों को नशीले पदार्थों की आपूर्ति करने से जुड़ी है। पिता पर आरोप है कि उन्हें पता था कि उनके बेटे के पास वैलिड ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है, इसके बावजूद उसे कार चलाने को दी। साथ ही उन्हें ये भी पता था कि उनका बेटा शराब पीता है, तब भी उसे पार्टी में जाने की इजाजत दी। इस मामले में पुलिस ने आरोपी लड़के खिलाफ IPC की धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या) और मोटर व्हीकल एक्ट के तहत केस दर्ज किया है। क्राइम ब्रांच के अधिकारी ने बताया कि मामले में ड्राइवर को फंसाने की साजिश नाबालिग के पिता और दादा ने साथ में रची थी। ड्राइवर की शिकायत पर पुलिस ने दोनों के खिलाफ IPC की धारा 365 (गलत तरीके से कैद करने के इरादे से अपहरण करना) और 368 (गलत तरीके से छिपाना या कैद में रखना) के तहत मामला दर्ज किया। केस में आरोपी के दादा सुरेंद्र अग्रवाल, पिता विशाल अग्रवाल और 2 डॉक्टरों समेत अब तक कुल 9 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं।
2019 में हुआ था कानून में संशोधन
2019 में मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन हुआ था। संशोधन के जरिए नाबालिग अपराधियों के लिए एक अलग से धारा ऐड की गई थी। इसमें नाबालिगों के अपराध के लिए माता-पिता, गाड़ी मालिक या गार्जिय की जवाबदेही तय की गई थी। मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 199A कहती है कि अगर नाबालिग कोई अपराध करता है तो ऐसे मामले में उसके माता-पिता या गार्जियन या फिर गाड़ी के मालिक को दोषी करार दिया जाएगा। कानून के अनुसार, अदालत ये मानेगी कि नाबालिग को गाड़ी देने में माता-पिता, गार्जियन या गाड़ी मालिक की सहमति थी। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर तीन साल जेल और 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है। ऐसे मामलों में खुद को निर्दोष साबित करने का सारा जिम्मा माता-पिता, गार्जियन या गाड़ी मालिक पर होता है। उन्हें साबित करना होता है कि नाबालिग ने जो अपराध किया है, उसके बारे में उन्हें कुछ नहीं पता था। उन्होंने ऐसे अपराध को रोकने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए थे।
….तब आरोपी को कुछ नहीं होगा
मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार जिस गाड़ी से नाबालिग ने अपराध किया है, उसका रजिस्ट्रेशन एक साल के लिए कैंसिल कर दिया जाएगा। इसके साथ ही 25 साल की उम्र होने तक आरोपी को ड्राइविंग लाइसेंस भी जारी नहीं किया जाएगा। ऐसे मामलों में आरोपी नाबालिग है, इसलिए उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की जा सकती। हालांकि, इस मामले में पुलिस का कहना है कि वो कोर्ट से नाबालिग पर वयस्क की तरह केस चलाने की अर्जी दाखिल करेगी, क्योंकि ये जघन्य अपराध का मामला है। बता दें कि दिसंबर 2012 में दिल्ली के निर्भया कांड के बाद कानून में संशोधन किया गया था। इसमें प्रावधान किया गया कि अगर 16 साल या उससे ज्यादा उम्र का कोई किशोर जघन्य अपराध करता है तो उसके साथ वयस्क की तरह बर्ताव किया जाएगा। अगर आरोपी को नाबालिग मानकर ही मुकदमा चलाया गया तो उसे तीन साल के लिए सुधार गृह भेजा में भेजा जाएगा। वहीं अगर उसे वयस्क मानकर मुकदमा चलाया जाता है और जेल की सजा होती है, तो भी कानूनन 21 साल तक उसे सुधार गृह में ही रखा जाएगा। इसके बाद ही जेल में डाला जा सकता है। बात दें कि अगर नाबालिग को वयस्क मानकर मुकदमा चलाया जाता है तो भी उसे मौत की सजा या उम्रकैद की सजा नहीं दी जा सकती।