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‘प्राण प्रतिष्ठा के बाद बदल गए भगवान के होठों पर आई मुस्कान ,बोलने लगीं आंखें’, बदल गई रामलला की मूर्ति: चमत्कार से सभी हैरान

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‘After Pran Pratistha, the smile on God’s lips changed, eyes started speaking’, the idol of Ramlala changed: Everyone was surprised by the miracle.

राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद रामलला के मूर्ति का स्वरूप बदल गया। रामलला की मूर्ति गढ़ने वाले अरुण योगीराज ने बताया कि जब उन्होंने प्राण-प्रतिष्ठा के बाद रामलला के दर्शन किए तो मंत्रमुग्ध रह गए। उन्हें भरोसा नहीं हुआ कि रामलला को उन्हीं ने गढ़ा है। प्राण-प्रतिष्ठा से पहले वह दस दिनों तक अयोध्या में ही रहे। उन्होंने कहा कि गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा के बाद रामलला के विग्रह के भाव बदल गए। उनकी आंखें जीवंत हो गई और होठों पर बाल सुलभ मुस्कान आ गई। प्राण-प्रतिष्ठा के बाद उनके विग्रह में देवत्व का भाव आ गया।
योगीराज ने गढ़ी ऐसी मूर्ति

 

उन्होंने पूरी कुशलता से रामलला के अंग-उपांग गढ़े। वह न केवल पांच वर्षीय बालक के अनुरूप रामलला के उभरे गाल और राजपुत्र की तरह सुडौल चिबुक गढ़ने में, बल्कि प्रतिमा की श्यामवर्णी शिला को पंचतत्व से निर्मित सतह का स्वरूप देने में भी सफल रहे। चेहरे की भंगिमा से लेकर संपूर्ण प्रतिमा की मुद्रा, बालों की लट से लेकर आभूषणों का सजीव अंकन और नख से शिख तक संयोजन-संतुलन से युक्त प्रतिमा कला-कृत्रिमता की पूर्णता की परिचायक के रूप में प्रस्तुत हुई। तथापि यह प्रतिमा ही थी। जिसकी ऊंचाई 51 इंच है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में बताया कि एक कलाकार भक्त के हृदय में भगवान कैसे उतरते हैं और मतिष्क तक जाते है। फिर पत्थर में समाहित होते और मूर्ति भगवान का आकार लेती है।

अरुण योगी राज कहते हैं कि हमारा परिवार 300 साल से मूर्ति तराशने का काम करता आ रहा है। मैं पांचवीं पीढ़ी का आर्टिस्ट हूं। राम की कृपा से ही काम मिलते हैं. पूर्वजों का आदर्श है। मेरे पिता ही मेरे गुरु हैं। 300 साल से काम कर रहे थे, भगवान ने बोला कि आओ और मेरा काम करो। मैं दुनिया का बहुत भाग्यशाली इंसान हूं। अरुण योगीराज इसे बनाने के लिए आधी-आधी रात तक जगते रहे। पांच साल के रामलला को बनाने के लिए बारीकियों का ध्यान रखा। इसके बाद भी वर्कशॉप में रखी मूर्ति की छवि और प्राण-प्रतिष्ठा के बाद विग्रह के स्वरूप में फर्क साफ नजर आया।
रामलला के संदर्भ में यह प्रयास कहीं अधिक सीमा तक फलीभूत होने की अपेक्षा थी। क्योंकि हम जिस स्थल पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करने जा रहे थे, वह कोई साधारण भूमि नहीं थी, बल्कि युगों पूर्व यहीं श्रीराम का जन्म हुआ था और आत्मिक-आध्यात्मिक दृष्टि से जरा भी सक्षम लोग इस अति विशिष्ट भूमि की ऊर्जा का अनुभव भी करते रहे हैं। रामलला की प्रतिष्ठा के बाद यह अनुभव और स्पष्टता तथा आसानी से किया जा सकेगा।

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