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चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहार/सुविधाएं देने के वादे पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, करेगा सुनवाई

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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के लिए एक जनहित याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमति व्यक्त की है। दरअसल, राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान मुफ्त उपहार का वादा करने की प्रथा के खिलाफ एक जनहित याचिका दी गई है। बता दें, 19 अप्रैल से लोकसभा चुनाव शुरू होने वाले हैं। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बुधवार को कहा कि यह जरूरी है और हम इस मामले पर कल सुनवाई जारी रखेंगे।

 

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राजनितिक दल चुनाव के दौरान करते हैं मुफ्त सुविधाओं का वादा

  • जनहित याचिका में चुनाव आयोग को चुनाव चिन्हों को जब्त करने और ऐसे राजनीतिक दलों के पंजीकरण को रद्द करने की अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।
  • मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बुधवार को कहा, यह महत्वपूर्ण है। हम इसे कल बोर्ड पर रखेंगे।
  • शीर्ष अदालत ने वकील और जनहित याचिका याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया की दलीलों पर ध्यान दिया कि याचिका पर लोकसभा चुनाव से पहले सुनवाई की जरूरत है।

SC करेगा मामले की सुनवाई

  • याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए लोकलुभावन उपायों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि वे संविधान का उल्लंघन करते हैं, और चुनाव आयोग को उचित निवारक उपाय करने चाहिए।
  • याचिका में अदालत से यह घोषित करने का भी आग्रह किया गया है कि चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से अतार्किक मुफ्त का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, समान अवसर को परेशान करता है और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करता है।
  • याचिका में कहा गया है, याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनाव को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देकर मतदाताओं को प्रभावित करने की हालिया प्रवृत्ति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है, बल्कि संविधान की भावना को भी चोट पहुंचाती है।
  • इसमें कहा गया है, यह अनैतिक आचरण सत्ता में बने रहने के लिए सरकारी खजाने की कीमत पर मतदाताओं को रिश्वत देने जैसा है और लोकतांत्रिक सिद्धांतों और प्रथाओं को बनाए रखने के लिए इससे बचा जाना चाहिए।
  • याचिका में चुनाव आयोग को चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 के प्रासंगिक पैराग्राफ में एक अतिरिक्त शर्त जोड़ने का निर्देश देने की मांग की गई है, जो एक राज्य पार्टी के रूप में मान्यता की शर्तों से संबंधित है, कि चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से मुफ़्त चीजे कोई राजनीतिक दल अतार्किक वादा/वितरित नहीं करेगा।

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